प्रो. महावीर सरन जैन
अर्थव्यवस्था के भूमंडलीकरण और उदारीकरण के दबाव के कारण आज प्रौद्योगिकी की आवश्यकता बढ़ गई है। वास्तव में प्रौद्योगिकीय गतिविधियों को बनाए रखने के लिए तथा सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना करने के लिए भारतीय जन मानस में वैज्ञानिक चेतना का विकास करना अनिवार्य है। देश की सम्पर्क भाषा हिन्दी में वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकीय ज्ञान के सतत विकास और प्रसार के लिए वैज्ञानिक भाषा के रूप में हिन्दी विकास के लिए वैज्ञानिकों एवं हिन्दी भाषा के विशेषज्ञों को मिलकर निरन्तर कार्य करना होगा।
हिन्दी में विज्ञान सम्बन्धी साहित्य का लेखन-कार्य भारतेन्दु काल से प्रारम्भ हो गया था। 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही इस दिशा में यत्र तत्र हुए प्रयास बिखरे हुए मिलते हैं। स्कूल बुक सोसायटी, आगरा (सन् 1847), साइंटिफिक सोसायटी, अलीगढ़ (सन् 1862), काशी नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी (सन् 1898), गुरुकुल कांगड़ी, हरिद्वार (सन् 1900) विज्ञान परिषद, इलाहाबाद (सन् 1913), वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली मण्डल (सन् 1950), वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग (सन् 1961) आदि ने वैज्ञानिक साहित्य के निर्माण में उल्लेखनीय कार्य किया । इस वैज्ञानिक साहित्य-लेखन की भाषिक स्थिति के सम्बन्ध में अपेक्षित विचार सम्भव नहीं हो सका। हिन्दी में जो पुस्तकें वैज्ञानिक विषयों पर उच्चतर माध्यमिक एवं इन्टरमीडिएट कक्षा के विद्यार्थियों को ध्यान में रखकर लिखी गई हैं उनकी संख्या बहुत अधिक है। उनकी भाषा-शैली भी अपेक्षाकृत सहज एवं बोधगम्य है । किन्तु जिन ग्रन्थों का निर्माण ''मानक ग्रन्थ अनुवाद योजना'' के अंतर्गत किया गया है उनकी भाषा-शैली में अस्पष्टता, अस्वाभाविकता तथा अँगरेज़ी के वाक्य-विन्यासों की छाया की बहुलता है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास के अनुरूप हिन्दी भाषा के विकास में नए आयाम जोड़ने की आवश्यकता है जिससे सुगम एवं बोधगम्य तकनीकी लेखन की शैली का तीव्र गति से अधिकाधिक विकास हो सके, जन-सामान्य के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी को सुबोध और सम्प्रेषणीय बनाया जा सके, उसमें जिज्ञासा की प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से उत्प्रेरित की जा सके। विश्लेषणात्मक चिंतन शक्ति का विकास किया जा सके और प्रकृति की प्रक्रियाओं के बीच समन्वय स्थापित करने की दृष्टि पैदा की जा सके। साथ ही, बच्चों और किशोरों की कल्पनाशीलता को आकर्षित किया जा सके तथा वयस्कों को रोचक ढंग से समुचित ज्ञान उपलब्ध हो सके।
विद्वानों को वैज्ञानिक लेखन की विषय-वस्तु और उसके प्रस्तुतीकरण, सरलीकरण, मानकीकरण, शैलीकरण आदि पर विचार-विमर्श करना चाहिए, एक स्पष्ट नीति बनानी चाहिए। वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी के विभिन्न विषयों के ग्रन्थों के हिन्दी अनुवाद की चर्चा होती है। मैं यह स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूँ कि वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी के विभिन्न विषयों के ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद करते समय भाषा जटिल, बोझिल एवं दुरूह हो जाती है। अनुवादित ग्रन्थ को पढ़ते समय उसे समझने के लिए यदि मूल ग्रन्थ को पढ़ने की आवश्यकता का अनुभव हो तो ऐसे अनुवाद की क्या सार्थकता।
इसकी अपेक्षा वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी के विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ विद्वानों के हिन्दी में व्याख्यानों की योजना बननी चाहिए। विद्वानों को अँगरेज़ी के तकनीकी शब्दों के प्रयोग की छूट मिलनी चाहिए। इन व्याख्यानों को टेपाँकित किया जाना चाहिए। इस सामग्री को आधार बनाकर ग्रन्थों के निर्माण की योजना बनाई जानी चाहिए। इसके लिए भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय एवं विज्ञान एवं अभियांत्रिकी अनुसंधान परिषद् को मिलकर कार्यक्रम का मार्ग प्रशस्त करने की पहल करनी चाहिए।
विश्वविद्यालयों, आई.आई.टी. संस्थानों, राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं तथा उद्योगों के हिन्दी जानने वाले विख्यात वैज्ञानिकों एवं तकनीकी विशेषज्ञों की श्रम-शक्ति एवं निष्ठा के समन्वयन से यह कार्य अपेक्षाकृत कम धनराशि के नियोजन तथा कम समय में सम्पन्न हो सकता है।
इसी पध्दति, विधि एवं प्रक्रिया से भिन्न-भिन्न विषयों के विश्व कोष निर्मित हो सकते हैं तथा इन्टरनेट पर सम्पूर्ण सामग्री सुलभ करायी जा सकती है। एक बार यह कार्य हिन्दी में निष्पन्न हो गया तो उसी पध्दति, विधि एवं प्रक्रिया से भारत की अन्य आधुनिक भाषाओं में भी यह कार्य सम्पन्न कराना सहज होगा।
हमें विज्ञान की अद्यतन एवं जटिल संकल्पनाओं को हिन्दी में यथासंभव सरल ढंग से व्यक्त करने की विधि विकसित करनी चाहिए। वैज्ञानिकों संकल्पनाओं को किस प्रकार सुबोध बनाने का प्रयास किया जाए; विज्ञान एवं तकनीक से संबंधित विभिन्न शाखाओं के तथ्यों, विचारों एवं संकल्पनाओं को हिन्दी भाषा की प्रकृति के अनुरूप सहज रूप में प्रस्तुत किया जाए - इन दृष्टियों से विचार-विमर्श आवश्यक है। वैज्ञानिक साहित्य की विषय-वस्तु को हिन्दी भाषा के प्रयोजनमूलक और व्यावहारिक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करना आवश्यक है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास और प्रसार के लिए तदनुरूप भाषिक विकास भी आवश्यक है।
सेवानिवृत्त निदेशक,
केन्द्रीय हिन्दी संस्थान
123, हरि एन्कलेव
बुलन्दशहर-203001
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